जिंदगी तेरा पता ...
जिंदगी तेरा पता ...
पूछना है इस शाम के आँचल में छूपते सूरज से
इस निर्मम कठोर रेगिस्तान की निर्दयी ख़ूबसूरती से
उजाड़ बियाबान से
चीड़ देवदार के पेड़ों से
इस नीले समन्दर में हिलोरें मारती उन्मुक्त लहरों से
उफनती मचलती नदी से
इस अभिमानी सागर में उठते ज्वार से
शांत पड़े इस तालाब से ,
पूछुंगा इस शीत से ताप से
तपिश से
ओस की बूंदों से
इस पीपल की ठंडी छाँव से
पिघलती बर्फ से
जड़ से चेतन से
पूछना है मुझे ,
हाथों में सजी इन लकीरों से
माथे पर लिखी इन तहरीरों से
मेरे ख्वाबों की ताबीरों से
आँखों से गुज़रती तस्वीरों से
प्रेम से
घृणा से
ठहराव और उन्माद से
मन में पलते पापों से
दिखावे के पुण्यों से
पूछुंगा ,
पूछना है लाखों लाख उम्मीदों की ज़र्रा ज़र्रा बहती यादों से
दिल की हर दबा दी गयी आवाज़ से
मेरी आँखों के कोर से छलकते आंसुओं से
मेरे अधरों पर बिछी मुस्कराहट से
टूटते बनते रिश्तों से
इन्हीं दरकते रिश्तों की नाज़ुक डोर से
सहमे सहमे मासूम सपनों से
रास्तों की हर रुकावट से
सौगात में मिले हर श्राप से
वरदान से
विशुद्ध प्रेम से
और मिलावट के सरोकारों से
हर शहर से गाँव से कस्बे से
रेंगते हुए हालातों से
पूछना है काली स्याह रातों में चमकते जुगनू से
चाँद से बतियाती उस चांदनी से
विधि के विधान से
रास्तों में भटकाते हर अवधान से
पूछुंगा उस शिला पर कुछ लिखते मनु से
आदम से
हव्वा से
किसी मजदूर की भूख से
किसी रईस के खनकते सिक्कों से
नाचते मोर से
हर दिशा से हर ओर से
सयाने लोगों से
नादान बच्चों से
ठिठक कर रह जाते इन क़दमों से
पागलों से दौड़ लगाते इन्ही क़दमों से
घर आँगन में फुदकती गौरैया से
चूल्हे से निकलते धुंए से
माँ के आँचल से
लहलहाते उस नीम के पेड़ से
सूख के टूट कर गिर चुके उन पत्तों से
संवेदना से
निष्ठुरता से
पूछना है
इश्क मोहब्बत से
बूँद बूँद रिसती उम्र से
रोम रोम बसती ख्वाहिशों से
दबी दबी फरमाइशों से
पूछना है मुझे
जिंदगी तेरा पता ......