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मिली साहा

Others

4.9  

मिली साहा

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गांव की यादें

गांव की यादें

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छोड़कर अपना गांव पीछे हम शहरों में आकर बस गए

लौट सके ना वापस जीवन की उलझनों में हम फँस गए

गांव की वो सुकून भरी जिंदगी अब बहुत याद आती है

शहरों की यह चकाचौंध अब नहीं मुझ को रास आती है

चारों तरफ शोर शराबा और भागा दौड़ी का माहौल है

सब अपनी जिंदगी में व्यस्त है किसकी सुनता कौन है


शहरों की पत्थर की इमारतों में वो सुकून कहां होता है

जो हमारे गांव के कच्चे घरों के आशियाने में मिलता है

क्या खुशबू होती थी गांव के कच्चे घरों की दीवारों की

खुले आंगन में बैठकर गिनती करते थे हम सितारों की


शहरों के बड़े मकानों में गांव जैसा आंगन कहां होता है

जहां बैठकर सबके साथ मस्ती का वो माहौल जमता है

बरसात में वहां जो माटी से सोंधी सोंधी खुशबू आती है

चाहकर भी मन से मेरे उस खुशबू की याद नहीं जाती है

गांव के लहलहाते खेतों की हरियाली मुझे याद आती है


शहरों में यह नज़ारा देखने के लिए आँखें तरस जाती है

अब तो बस दूर रहकर फोन पे ही रिश्ते निभाए जाते है

मेहमान बन कर बस कभी-कभी ही अपने गांव जाते हैं

शहरों में रहते हैं हम पर दिल में तो हमारे गांव बसता है

जो आज भी गांव की मिट्टी की खुशबू महसूस करता है


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