एक सच
एक सच
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एक सच था लोगों को खटक गया है
शूल ज्यों गले में कोई अटक गया है
ज़िन्दगी कब जिये बशर कब गुनगुनाये
रोज़ी रोटी कमाने में ही भटक गया है
कब से पाल रखा था पलकों पे नाज़ से
ख़्वाब वो हक़ीक़त देख चटक गया है
कभी कभी तो पूरा चाँद यूँ भी लागे है
चिड़िया की रोटी कौआ झटक गया है
रंजो-अलम सह रहा फिर भी हंस रहा
शिव बन बशर ये ज़हर गटक गया है!!