किताबें
किताबें
मेरी ज्यादातर किताबें वार्डरोब में बंद हैं.
खुद ही रख दी हैं मैंने वहां,
कुछ महीनों पहले
इसलिए नहीं कि जगह कम है कमरों में, या फिर
बाहर रहने पे उनके फटने, मुड़ने का खतरा है,
बल्कि इसलिए कि मुँह चिढाने लगी थी इनदिनों,
ये किताबें मुझे
जब भी गुज़रता था, किताबों वाले रैक से कतराकर कभी,
गुलज़ार या टैगोर फर्श पे आ गिरते थे
उन्हें उठा कर रखने में, खराशें आ जाती थी,
हथेलियों पर
(नज्मों की चुभन बड़ी गहरी होती है)
कई दफा कोई किस्सागो चीखता था,
अपनी कहानियों से निकलकर
बहुत नागवार गुज़रता था मुझे,
बहुत वक़्त लगता था, उन्हें बहलाकर सुलाने में.
ये वक़्त जो अब बचाता हूँ, उन्हें अनसुना कर,
गुज़रता है बड़े आराम से,
टेलीविजन के चैनल पलटने में.
कई दफा मॉल में यूं ही
विंडो शॉपिंग कर लेता हूँ,
इसी वक़्त में
आराम सा है आजकल,
जब से वार्डरोब में बंद कर दी हैं मैंने,
मेरी ज्यादातर किताबें