सड़कें आइना होती हैं शहर का
सड़कें आइना होती हैं शहर का
सड़कें सिर्फ सड़कें नहीं होती,
आइना होती हैं शहर का।
देखना हो चेहरा शहर का,
तो कभी बैठ जाइए सड़क किनारे,
और देखिए सड़क पर लोगों के,
चलने का ढंग,
रुकने का सलीक़ा,
गाड़ियाँ भगाने का तरीक़ा,
ट्रैफ़िक सिग्नल पर,
लाल-हरी बत्ती की,
सुनी-अनसुनी करने का हुनर।
सड़कें सिर्फ सड़कें नहीं होती,
एक भरा पूरा बाज़ार होती हैं।
जहाँ बिकता और मिलता है,
बहुत कुछ,
नेकी से लेकर ईमान तक,
जिस्म से लेकर जान तक।
कहीं मिलती है,
दमदार, खिलखिलाती ज़िंदगी,
टूटी-फूटी ख़स्ताहाल सड़कों के इर्द-गिर्द,
और कहीं बेदम, ख़स्ताहाल ज़िंदगी,
साफ़ चमचमाती सड़कों के ओर-छोर।
सड़कें सिर्फ सड़कें नहीं होती,
इतिहास समेटे होती हैं शहर का।
गवाह होती हैं वो,
किसी शांति मार्च की,
किसी इंक़लाब की,
किसी ख़ूनी क्रांति की,
किसी तख़्ता-पलट की।
देखा होता है उसने,
सभ्यताओं को बसते और ढहते,
बस्ती को गाँव, गाँव को नगर,
नगर को महानगर बनते,
ख़ुद बनते-बिगड़ते सड़कों ने,
देखा होता है सल्तनतों को,
परवान चढ़ते, उतरते।
सड़कें नहीं रोकती कभी,
किसी को चलने से,
किसी को मुड़ने से,
देती है अधिकार,
राजा को भी उतना ही,
जितना प्रजा को,
संकरी, पतली पगडंडियों से भी,
रास्ते जाते है बुलंदियों के,
और चौड़े, इठलाते राजमर्गों में भी,
सुरंगे खुलती हैं बर्बादियों की।
किसी भी शहर की सही पहचान,
अधूरी होती है,
उसकी सड़कों को जाने बिना।
जानना हो शहर को तो,
बैठ जाइए किसी सड़क किनारे,
और करिए उससे बातें दिल खोल,
सड़कों की ज़ुबानी हो सकता है
सुनने को मिलें,
कुछ अनसुने क़िस्से,
और खुल जाएँ,
इतिहास के कुछ अनखुले पन्ने।