तुम्हारा सानिध्य
तुम्हारा सानिध्य
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सानिध्य की गुनगुनी धूप
मेरे अंतर्मन को...
सेंक पहुँचाती है...
तुम्हारी नज़रें...
मुझे छू कर कहती हैं
मैं हूँ ना…
तुम्हारे होने का एहसास
मेरे चारों तरफ...
खुश्बू का आवरण लपेटता है
मैं ये सब...
खोना नहीं चाहती…
संबल है ये मेरा...
यही तो जीवन है…
मेरी जमा-पूँजी…
तुम्हारे होने से...
मुझे..
खुद के होने का...
एहसास होता है…
कि
तुम्ही से तो हूँ मैं...