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अबे मनुष्य

अबे मनुष्य

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अबे मनुष्य!

 

 

गालियों वाले

सारे पशु-पक्षी

और जलचर;

सुनते हुऐ  गालियाँ

अपनी-अपनी नस्ल की,

उस मनुष्य से-

जिसे कहा जाता है

सृष्टि का महानतम प्राणी!

नदी-तट पर खड़े

वृक्ष के निकट

एकत्र हुऐ ।

अकारण की गालियों ने

उनमें भी

क्रोध के विषाणु को

दे दिया जन्म।

क़तई स्वाभाविक था-

उत्तेजित हो

एक-दूसरे पर

झपट पड़ने की मुद्रा में

चीख़-चीख़कर

एक-दूसरे को देने लगे

गालियाँ वे

लेकिन इस उपक्रम में

सबसे बड़ी

हैरत की बात यह:

सभी के मुखों से

उनकी अपनी-अपनी बोलियों में

मात्रा एक ही आशय की ध्वनियाँ

‘‘अबे मनुष्य!

क्रूर मनुष्य!!

हत्यारे मनुष्य!!!’’

ऐसा तो कभी

देखा न था

सुना भी नहीं था

कि ये सारे जीव भी

आपस में

मनुष्यों की तरह ही

लड़ेंगे-झगड़ेंगे

इतना ही नहीं

देंगे गालियाँ भी

मनुष्यों की

मनुष्यों की तरह ही

अपने शब्दकोष में

एक सर्वथा

नया शब्द गढ़कर!

 


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