दर्द की कहानी दर्द की जुबानी
दर्द की कहानी दर्द की जुबानी
दर्द जो संभाले रखा था अब तलक
आँखों से झलकता रहा
पर तपिश कम कर न सका।
अब शब्दों का लिबास चाहता है।।
सबको खुद से मुखातिब कराना चाहता है।।
अस्तित्व की दास्ताँ सुनाना चाहता है।।
अश्कों में बहकर वज़ूद खोना नहीं चाहता है।।
कभी तुमसे तो कभी मुझसे पूछना चाहता है।।
क्या ये सब तुमने भी सहा है।
क्या कोई इस आग में तपा है।
क्या मुझसा कोई बना है।