थोड़ी तहज़ीब
थोड़ी तहज़ीब
थोड़ी तहज़ीब फिर आज़माते हैं
मैं और तुम फिर आप बन जाते हैं
न मेरी हों शिकायतें
न तेरे हों कोई सवाल
न मन में हों कोई भेद
न दिलो में हो मलाल
ज़िन्दगी को फिर संवारते हैं
मैंं और तुम फिर आप बन जाते हैं
खिलेगा प्यार बिखर जायेंगे
देखोगे यार संवर जायेंगे
साथ पल दो पल का नहीं
हरपल साथ चलते जायेंगे
प्यार को प्यार फिर दिखलाते हैं
मैंं और तुम फिर आप बन जाते हैं
न मेरी हो तनहाइयां
न तेरी हों रुसवाईयां
तेरे हाँथो में हों
मेरी नाज़ुक कलाइयां
गुज़री शामों को फिर दोहराते हैं
मैंं और तुम फिर आप बन जाते हैं
तुझे सुनना हो मेरी चाह
तेरी नज़रें तके मेरी राह
गिरुँ- पडू मैंं सम्भलू
उठूं-चलू पकड़ तेरी बाँह
ख़यालों में फिर, चाँद घूम आते हैं
मैंं और तुम फिर आप बन जाते हैं
थोड़ी तहज़ीब फिर आज़माते हैं
मैंं और तुम फिर आप बन जाते हैं॥