चलो छोड़ो, हम बेनाम ही अच्छे...
चलो छोड़ो, हम बेनाम ही अच्छे...
तुम हो बहुत दूर
मगर सबसे करीब
भरी दोपहर में
खिड़की से झांकती
धूप की तरह
अँधेरी रात में
झाड़ियों के पीछे से बोलते
झींगुर की तरह आवाज़ की तरह
अलमारी में किताबों के पीछे
करीने से रखे
पुराने ख़त की तरह
दोस्तों के बीच खड़े
किसी पुराने किस्से की यादों की तरह
तुम जो पिता की यादों की तरह
तुम जो भाई के स्नेह की तरह
तुम जो दोस्तों के साथ की तरह
तुम जो दुश्मन के वार की तरह
हर वक़्त हर पल मेरे साथ हो
आज लग रहा है तुम्हें समेट लूं
और छुपा लूं अपनी कोख में
या छाती से लगाकर खूब प्यार दूं
तो ख़याल आता है
कौन करता है स्वीकार
ऐसे रिश्ते को
जहाँ मैं एक ही व्यक्ति के साथ
सारे रिश्ते जोड़ती हूँ
फिर सोचती हूँ
किसे दिखाना है
क्या दिखाना है
प्यार के रिश्ते का कोई भी नाम हो सकता है
चलो छोड़ो, रहने भी दो
हम बेनाम ही अच्छे...