मतदाता
मतदाता
आज उठा वो
सुबह सुबह
अच्छे से तैयार हो
निकल पड़ा अपने घर से
साड़े पाँच का उठा
पौने सात बजे तक
घड़ी का घंटा देखता गया
हाथों की उँगलियाँ साफ कर
मलता गया मलता गया
ख़ुश भी था उत्सुक भी
उम्र के इस पड़ाव में
उसके हाथों के मूल्य को
वो जानता था
वो भली भाँति पहचानता था
निकल पड़ा वो स्कूटर पे
अपनी बीवी संग
ब्याहता बच्चों को भी
फ़ोन करके बोल दिया
मैं चला
तुम भी निकलो
अपने फ़र्ज़ को पहचानो
अपने फ़र्ज़ को समझो
पंद्रह मिनट का रास्ता
पार किया सोचते सोचते
रास्ते में लोगों से सोनिया
बतियाते हुए,रोकते हुए
जैसे ही पहुँचा
मंज़िल पे अपनी
दरवाज़ा बंद था
दरवाज़े के बाहर
लगा ताँता कम ना था
उसको नम्बर एक पे आना था
अपने हाथों पर निशान
पहले उसे बनाना था
नाश्ता खाते , बातों में
वक़्त गवाते.. कर्मचारी
खोलो दरवाज़ा सात बज गए
निवेदन किया उसने भाई
चलो चलो, अभी वक़्त हुआ नहीं
बाद में आना अभी घंटा बजा नहीं
ग़ुस्सा आया, वो तिलमिलाया
फ़ोन निकाल
कैमरा का मुख खोल
उसने था सबको दिखाया
मैं अपना फ़र्ज़ निभाने आया हूँ
मेरा बहुमूल्य मत
मैं सबसे पहले देने आया हूँ
डर भाग खड़े हुए सब
दरवाज़ा खुला
ऊँगली को मलते हुए
उसने अपना मतदान
था दिया
काला निशान मिला
ख़ुशी ख़ुशी वो
अपने घर को था लौट गया
वो मतदाता अपना फ़र्ज़ निभा
ख़ुशी ख़ुशी था लौट गया ….