खोने के बाद
खोने के बाद
आज धूप कुछ हल्की-सी लगी मुझे,
क्यूँ नज़ारों में धुँध-सी छायी रही,
ये सच था या ख़यालों का खेल था,
जो ऑंखों में नमी-सी समायी रही।
दूर अतीत की राहों पे चलकर,
कुछ पल ठहर से जाते हैं,
ख़ुशनुमा यादों के बॉंध से टकराकर,
अश्क भी सिमट से जाते हैं।
लगता है जैसे कल ही की बात है,
तुमने आकर कानों में कुछ कहा था,
अपने हाथ तुम्हारे होठों पे रखकर,
मैंने तुम्हें चुप जाने को कहा था।
वही हाथ आज ये दुआ माँगते हैं,
क्या तुम लौट आओगे फ़िर से,
ये जो वक्त मायूसी में डूब रहा है,
उसे पार लगा जाओगे फ़िर से
ख़ताएँ तुम्हारी ग़िनी थीं सारी,
प्यार लेकिन कैसे तोलती,
ना की थी दग़ा ना थे बेवफा,
फिर दिल तुम्हारा कैसे टटोलती।
चंद शिक़वे थे जो तुमसे,
बातें सारी वो कर गए,
लिख रही थी जिनमें,
अपनी दास्तान मैं बेपरवाह,
मेरे ही हाथों पन्ने वो सारे बिखर गए।
समेट लिया था हर क़तरा मैंने,
पलकों से ग़िरती यादों का,
कत्ल किया था हर पल दिल की,
चिलमन से झाँकते जज़्बातों का।
आज फिर दिल को तुमने छुआ है,
क्यूँ वहॉं दर्द का एहसास है ?
परवाना हूँ, जलना तो फ़ितरत थी मेरी,
क्यूँ आज तुम्हारे इश्क की प्यास है ?
ग़लियों में तुम्हारी हैं पड़ती,
राहें मेरी भी धड़कन की,
आकर पनाहों में कर लो कैद,
भुलाकर चुभन उस बिछड़न की।
धूप लगने लगी सुनहरी,
नज़ारे सारे गुलिस्ताँ हो जाएँ,
तुम जो निग़ाहे मिला लो हमसे,
हम डूबकर उनमें तबाह हो जाएँ।