मानवता
मानवता
जब जब धर्म मनुज से ऊपर हो भीषण संहार,
नर के निहित संसाधन ईश्वर बहे रक्त की धार।
जिस राष्ट्र में मानव भूले मानव की परिभाषा,
उस राष्ट्र में मानव से नहीं मानवता की आशा।
नहीं मुझे उस ईश्वर से कोई इच्छित उपहार,
जहाँ देवालय में होती है मानवता की हार।
हे ईश्वर लेकर मूझको तुम चलो राष्ट्र विशेष,
करुणा को तत्तपर हो नर उस दयाधर्म प्रदेश।
हृदय राग से हो प्रफुल्लित बने प्रेम पर्याय,
दिल से बरसे प्रेमधार हो ऐसा कोई उपाय।
प्रभु नाम पर मेरे ईश्वर ना भय का कोई काम,
ऐसे किसी देश मे बसते हैं प्रभु कवि के प्राण।