अपनी ख़ुशी के लिए लिखता हूँ !
अपनी ख़ुशी के लिए लिखता हूँ !
मैं किसी के लिए नहीं लिखता,
अपनी ख़ुशी के लिए लिखता हूँ
साँसों में फँसी हुई आज भी,
अपनी हँसी के लिए लिखता हूँ,
तुम चाहो तो मुस्कुरा लेते हो,
दिल से भी,
मुस्कुराता हुआ कभी था जो,
मैं उस कवि के लिए लिखता हूँ,
तुम डर रहे होगे मेरे अल्फ़ाज़ से अगर,
डरना जायज़ है तेरा !
मैं गलत के लिए नहीं,
सिर्फ सही के लिए लिखता हूँ,
ओढ़ के चादर शराफत की की,
घरो में छिपे बैठे हैं,
उनकी दीवारों को पता है,
वो बोल नहीं सकते,
मैं आवाज़ हूँ उनकी,
अपने देश - अपनी ज़मीं के लिए लिखता हूँ...!