दौड़
दौड़
चलो चाहे गिरो,
तुम्हें आगे बढ़ना ही है।
पाँव नाज़ुक हैं तो क्या ?
तुम्हें ख़ुद संभलना ही है।
अब चलना सीख लिया तो क्या ?
तुम्हें दौड़ना तो नहीं आया !
ज़िन्दगी की मुश्किल दौड़ में,
सबसे जीतना तो नहीं आया !
क्या करोगे तुम,
अगर हर कक्षा में प्रथम स्थान न आया ?
कैसे बढ़ोगे तुम,
अगर पाँच छह कलाओं में पद्मभूषण न पाया ?
तुम नहीं जानते,
शहर की हर नौकरी शहद के समान होती है।
भीड़ की हर मधुमक्खी इसे पाने के लिए रोती है।
तुम्हें मधुमक्खी नहीं, भँवरा बनना होगा।
फूलों का रस, शहद बनने से पहले ही पीना होगा।
ऐसा न किया, तो भविष्य अधर में लटक जाएगा।
भाग्य पंछी सफर के पहले ही पथ भटक जाएगा।
अभी से दौड़े नहीं तो पीछे छूट जाओगे।
ऊपर उठने की बजाए, नीचे फिसलते जाओगे।
यही तो प्रतिस्पर्धा की विडंबना है।
हरेक को डॉक्टर, इंजीनियर, आई०ए०एस० बनना है।
पहले काम के लिए पढ़ाई,
फिर पढ़ाई के लिए काम करना है।
जीवन की उमंगों तरंगों को भूल,
बस नोटों की मशीन बनना है।