हकीकत
हकीकत
आज घिर आये बादल कुछ इस तरह
कि सूरज को भी झरोखे से देखना पड़ा।
दिल को आज उसी का ख्याल हो आया
आंखों से अश्कों को रिहा करना ही पड़ा।
याद आ ही जाती बारिश की रिमझिम फुहारों में
दिन और रात एक सी लगती है उसकी यादों में।
मन की फुलवारी में वो समायी है इस तरह
कि दिल की बातों को लबों पर लाना पड़ा।
एक तड़प एक दर्द दे शर्मसार सा मेरा जहां किया
वेदना ने आंखों से आंसुओं को बेशुमार बहा सा दिया।
मेरे जज्बातों से इस कदर खेल गयी वो
कि उसके किस्सों को किताब में लिखना पड़ा।
वो था उसका झूठा अपनापन झूठे कस्में वादे
सच जो मेरी बिलखती आंखें सिसकती सांसें।
आज वो बेवजह इल्जाम लगा रही
कि जख्मी विश्वास का जिक्र कराना ही पड़ा।।