नन्ही सी जान
नन्ही सी जान
मृत्यु के दलदल से छूटकर
बड़ी मुश्किल से निकल पाई
कैसे बताऊँ वादियों को
उन तक कैसे पहुँच मैं पाई
कोमल सा हृदय मेरा
जिस पर गहरी चोट खाई
घाव दिया जिन अपनों ने
चाह कर भी उन्हें दिल से निकाल ना पाई
जब की तमन्ना जीने की
हर चाह आखिरी साँस बन गई
लड़के को मानें वरदान
लड़की क्यों अभिशाप बन गई
जीने का हक छीन रहे
आज़ादी की बातें करते हो
दुर्गा लक्ष्मी को पूजते
कन्या का वध क्यों करते हो
लड़के के जन्म पर तो
खुशियाँ सब मनाते हो
लेकिन लड़की पैदा होने पर
आँसू क्यों बहाते हो
ना जाने लोगों की ये सोच कब बदलेगी
हमें भी हक से जीने की आजादी कब मिलेगी
बेटी हूँ इस देश की मैं
लड़की ना कोई अभिशाप है
कन्या भ्रूण हत्या महापाप है
कन्या भ्रूण हत्या महापाप है
कन्या भ्रूण हत्या महापाप है।