बेटी बचाओ देश बचाओ
बेटी बचाओ देश बचाओ
परिंदों के पर होते हैं।
दरिंदों के सिर होते हैे।
काट दो उनके सिर,
जो लड़कियों को देख
अपना आपा खोते हैं।
तलवार में है चोट,
सुई में भी है जोर,
काट दो उनको जो
ऐसे दोस्तों का साथ देते है।
कागज पर हम जोर लगाते।
आपस मे हम तोड़ निकालते।
अगली सुबह हम सब भूल जाते।
फ़िर से वक़्त
वहीं चीज़ दोहराता है।
आम आदमी फिर से
अपना खून खौलाता है।
कागज पर अफसोस जताता है।
अगली सुबह सब भूल जाता है।
बेटी का बाप
पत्थर पर सिर पिटता है।
खबर यह सारे
शहर में बिकती है।
उल्टा बेटी पर
उंगली उठाता है देश,
कागज पर अफसोस
जताता है।
अगली सुबह
सब भूल जाता है।
बाप यह बोझ
ना उठा पाता है।
खाने में एक दिन
ज़हर मिलाता है।
खुदा के दरबार में
पूरा परिवार हाजरी लगाता है।
देश कागज पर
अफसोस जताता है।
अगली सुबह
सब भूल जाता है।
वर्षों से यह चल रहा है।
धीरे-धीरे यह बढ़ रहा है।
आम आदमी
कुछ ना कर रहा।
वह सिर्फ
अफसोस जता रहा।
अगली सुबह वह सब
भूल जा रहा।
भूल रहे है वो
उनके घर में बहन-बेटी है।
अगली बारी कहीं
उनकी ना है।
फिर क्या,
कागज पर अफसोस
जताने वाले हजारों हैं।
अगली सुबह
भूल जाने वाले लाखों है।
आ गया वक़्त,
कागज से बाहर आने का
आ गया वक़्त ,
बेटी क्रांति की मशाल जलाने का।
आ गया वक़्त,
दरिंदों को मार भगाने का।
बेटी बचाओ देश बचाओ का।