कुछ ज़ख्म
कुछ ज़ख्म
कुछ ज़ख्म
है कुछ ज़ख्म दिल के जो मै दिखाना नही चाहता…
है कुछ तक्लिफ़े मेरी जो मै बताना नही चाहता…….
क्यो पूछते हो हाल मेरा मुझसे,
झूट कहकर मै कुछ छिपाना नही चाहता…
है कुछ ज़ख्म दिल के जो मै दिखाना नही चाहता…
है कुछ तक्लिफ़े मेरी जो मै बताना नही चाहता…….
कोई खुश है अपनी गलियो मे,
कोई दुबा है रंगरलियो मे,
कोई नाचता गाता जश्न मनाता,
कोई बोतलो संग शोक मनाता,
परदो से ढकी है जो दुनिया मेरी खामोशी की,
वो परदा मै उठाना नही चाहता,
दर्द है दिल मे मगर मै जताना नही चाहता…
है कुछ ज़ख्म दिल के जो मै दिखाना नही चाहता…
है कुछ तक्लिफ़े मेरी जो मै बताना नही चाहता…….
कल तक यहां खुशियो का मेला था,
दिल कभी भी ना ऐसा अकेला था,
जब तन्हा कर दिया मुझे किसी अपने ने,
आसूं ला दिए अधूरे सपने ने,
ये सच नही कि मै कुछ भुलाना नही चाहता,
मगर बात ये है कि मै कुछ भुला नही पाता,
है कुछ ज़ख्म दिल के मै जो दिखाना नही चाहता…
है कुछ तक्लिफ़े मेरी जो मै बताना नही चाहता…….
वक्त वो भी अच्छा था,
प्यार मेरा भी सच्चा था,
मगर मुकम्मल नही होती हसरत सबकी,
एक जैसी नही होती किस्मत सबकी,
याद कर किस्मत पे आसूं बहाना नही चाहता,
रो कर मै किसी को रुलाना नही चाहता,
है कुछ ज़ख्म दिल जो के मै दिखाना नही चाहता…
है कुछ तक्लिफ़े मेरी जो मै बताना नही चाहता…….
टूटता तारा दिखा ना कभी,
शायद मुराद मेरी भी पूरी होती,
इश्क के पन्नो पर,
कहानी मेरी न यूं अधूरी होती,
एक दरिया है दिल मे दर्द का, जो ठहरा सा लगता है,
मातम मनाने दिल मे गमो का सेज सजता है,
मगर ओरो की मेहफ़िल मे गम अपना सजाना नही चाहता,
ज़ाम पी कर आंसूओ का मै चीखना चीललाना नही चाहता,
है कुछ ज़ख्म दिल के जो मै दिखाना नही चाहता…
है कुछ तक्लिफ़े मेरी जो मै बताना नही चाहता…….
कुछ पाकर खोना खो कर पाना जीवन का नियम अज़ीब सा,
मिलकर बिछडना बिछडकर मिलना सारा खेल नसीब का,
कोई है जो गूम हो गया है यहीं कहीं, मगर गुमशुदा खुद को मानता हूँ,
ढूढने कोई न आएगा मुझे कमबक्त इतना तो मै जानता हूँ,
लुटी सलतनत की दांस्ता मै सुनाना नही चाहता,
झुकी डाली को ओर मै झुकाना नही चाहता,
है कुछ ज़ख्म दिल के जो मै दिखाना नही चाहता…
है कुछ तक्लिफ़े मेरी जो मै बताना नही चाहता…….
क्या सुनाऊ कथा हार की, डंका तो जीत का बजता है,
याद कर बेवफ़ाई यार की खंज़र कोई दिल मे उतरता है,
माना मेरी खता इतनी सी थी कि हम प्यार मे पागल से हो गए,
मगर खता तो उनकी भी थी जो हमे यूं पागल कर गए,
भीगे अश्को के साथ हाल-ए-दिल यूं बया करना नही चाहता,
संग अपने किसी ओर का वक्त यूं ज़ाया करना नही चाहता,
क्यो पूछते हो हाल मेरा मुझसे,
झूट कहकर मै कुछ छिपाना नही चाहता…
है कुछ ज़ख्म दिल के जो मै दिखाना नही चाहता…
है कुछ तक्लिफ़े मेरी जो मै बताना नही चाहता…….
-सुशांत मुखी