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Vishal Agarwal

Others

3.4  

Vishal Agarwal

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"मैं एक कवि हूँ, सत्ता का गुणगान नहीं लिख सकता हूँ"

"मैं एक कवि हूँ, सत्ता का गुणगान नहीं लिख सकता हूँ"

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पीर भुलाकर दुनिया की,  श्रृंगार नहीं लिख सकता हूँ
मैं एक कवि हूँ, सत्ता का गुणगान नहीं लिख सकता हूँ
वो बात जो अखरेगी मुझको, मैं तान के सीना लिखुँगा
मरते हुए किसानों का मैं, खून पसीना लिखुँगा
बेघर, बूढ़ी माँओ का मैं, दारुण क्रंदन लिखुँगा
भूखे को रोटी जो देगा, उसका अभिनन्दन लिखुँगा
झूठे नेताओं का किंचित, यशगान नहीं लिख सकता हूँ
मैं एक कवि हूँ, सत्ता का गुणगान नहीं लिख सकता हूँ"
तन के भीतर मारी जाती, कन्याओं का दुःख लिखूंगा
सभा मध्य खींची जाती, द्रोपदी की साड़ी लिखूंगा
निर्दोषों का जेलों में, घुट घुट कर जीना लिखुंगा
और गरीबों के बच्चों का, आंसू पीना लिखुँगा
दरबारों का मैं मिथ्या, व्याख्यान नहीं लिख सकता हूँ
मैं एक कवि हूँ सत्ता का, गुणगान नहीं लिख सकता हूँ
मैं शहीद के बच्चों की, आँखों का पानी लिखूंगा
उनके दिल की सारी पीड़ा, और कहानी लिखूंगा
बेवक्त हुईं जो विधवायें, मैं उन बहनों की पीर लिखूं
होंठों पे मुस्कान और, आँखों से बहता नीर लिखूं
मैं शहीद की बेवा का, अपमान नहीं लिख सकता हूँ
मैं एक कवि हूँ, सत्ता का गुणगान नहीं लिख सकता हू
मेरी कविता वार करेगी, आस्तीन के साँपों पर
कविता मेरी विष्फोट करेगी, उनके बहरे कानों पर
फुटपाथों पर जो सोते हैं, उनका कुछ दर्द सुनाना है
सत्ता के सिंघासन को, दर्पण मुझको दिखलाना है
तीन सौ दो के दोषी को, महान नहीं लिख सकता हूँ
मैं एक कवि हूँ सत्ता का गुणगान नहीं लिख सकता हूँ
संदिग्ध परिस्थिति में जलकर, मरने वाली का दुःख लिखना है
उसके लाचार पिता की बेबस, आँखों का झरना लिखना है
लिखना है उन दुष्टों की करनी, का कुछ भेद मुझे
अगली पंक्ति को लिखने में, होता है बेहद खेद मुझे
ऐसे दुष्टों को मैं कतई, इंसान नहीं लिख सकता हूँ 
मैं एक कवि हूँ सत्ता का गुणगान नहीं लिख सकता हूँ
जब मैं भी भारतवासी हूँ, तो क्यूँ भर आये जोश नहीं
माँ के अपमान को देख के बेटा, रह सकता खामोश नहीं
रंग बिरंगे झंडों से, माँ की तस्वीर बिगाड़ रहे
आतंकी मेरी बहनों की, हैं मांगें रोज़ उजाड़ रहे
इस घटिया हरकत को मैं, जेहाद नहीं लिख सकता हूँ
मैं एक कवि हूँ सत्ता का गुणगान नहीं लिख सकता हूँ
हर बेटी डर से काँप रही, न जाने कैसा अवसर है
बाहर जितना भय है उसको, उससे ज्यादा घर में डर है
वहशी कुत्तों से घर की, बेटी को आज बचाना है
बस दे दो मृत्यु दंड इन्हें, इन सबको सबक सिखाना है
मैं एक कवि हूँ सत्ता का गुणगान नहीं लिख सकता हूँ


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