वक्त
वक्त
वक्त होता नहीं,
निकाला कीजे,
अपने रिश्तों को
ज़रा और संवारा कीजे।
कागजों में लिखकर,
कब तलक संभालेंगे,
शाम शबाब पे है,
नई नज्म गुनगुना दीजे।
जरूरी कहाँ कि शक्ल,
तसव्वुर सी ख़ूबसूरत हो,
दिल के जज्बात हैं,
रूह की कश्ति में उतारा कीजे।
जिन्दगी बार-बार
फिर कहाँ मौक़ा देगी,
तिश्नगी फिजूल है,
फिर वक्त यूं ना गंवारा कीजे।