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खतायें

खतायें

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यूं ही नहीं डगमगा रहे हैं कदम हमारे, 

कुछ तो खतायें तुमसे भी हुई होगी।

मत लगाओ खामखां इल्जाम हम पर, 

कुछ तो वफाएं हमसे भी हुई होगी। 


अल्फाजों का ही खेल नहीं सिर्फ, 

ये सारे जज्बातों की जागीर है। 

अपने अंदर भी झांक कर देखो, 

आखिर झलक रही कैसी जमीर है। 


फिर आकर बयां करना करीब हमारे, 

की कौन सी खतायें हमसे हुई होगी। 

याद है बातें सारी मुझे आज भी, 

तुम्हारा यूँ ही मुकरते हुए चले जाना। 


घंटो तक मेरा इंतजार करना पर, 

तुम्हारा मुड़कर वापस ना आना। 

माना गिले शिकवे थे बहुत पर, 

कुछ शिकायतें हमें भी हुई होंगी। 


यूं ही नहीं डगमगा रहे हैं कदम हमारे, 

कुछ तो खतायें तुमसे भी हुई होगी।


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