पुरखा
पुरखा
अनुभव की पोटली लिए
कहते है ज्ञान की बातें
कहावते सारी जिनकी
वैज्ञानिक तथ्यों से
न है परे
अतीत की यादें
साझा करते
फिक्र बच्चों की करते
वर्तमान में
कभी सामंजस्य न बिठा
उखड़े उखड़े से रहते
दुआओं के लिए
मूंदते है आँखे
आशीषों के लिए
उठते है हाथ
कितना भी वैभवशाली घर हो बढ़ा
बिन पुरखे के
अर्थहीन है खड़ा
सीमेंट इट के जोड़ में
पुरखा का प्रेम है गर भरा
छोटी सी कुटिया ही सही
शांत,सौहाद्रपूर्ण है लगा
सही गलत का फर्क सिखाये
नीति, नियमो का पाठ पढ़ाये
भरा भरा सा घर लगे
जिस घर आँगन में पुरखा रहे
प्रेम के भूखे
विशाल हृदय है
बचपना की वापसी
ये पुरखा है