सिल्हूट का बलात्कार
सिल्हूट का बलात्कार
एक लड़की की सिल्हूट तस्वीर,
"लड़की के गुमशुदा होने पर,
1098 पर सम्पर्क करें।"
समय के साथ-साथ,
उस काली सिल्हूट पर,
कुछ सफेद चाक के,
निशान उभरते हैं।
जो इंगित करते हैं-
कि हैं कुछ खूंखार भेड़िये,
पागल हो चुके,
कुछ लहू के प्यासे,
सदैव तैयार,
रँगकर लहू से लाल,
अपने मुख को
सूंघते फिरते हैं-
औरतों के जिश्म की खुशबू।
जहाँ मिला मौका,
हैं तैयार भभोरने को-
उस तस्वीर के द्ववारा,
शायद वह कुछ,
उगलना चाहते हैं- मल,
अपने दिमाग एवं मुख से,
जिनमें रेंगते हैं -
गिजगिजाते कीड़े और,
बताना चाहते हैं इस समाज को कि,
लड़की दो वक्ष और,
वेजाइना के अलावा कुछ नहीं।
इसीलिए बना दिये हैं उन्होंने,
निशाँ उस सिल्हूट पर,
लिख दिए हैं कुछ ध्येय वाक्य,
हर सार्वजनिक शौचालय पर,
कैसे बचेगी आबरू,
उस सजीव देवी की,
जिसके सिल्हूट की रक्षा,
करने में नाकाम रहा है,
ये समाज, ये सरकार,
ये कानून, ये न्यायालय,
ये पुलिस व्यवस्था।
हे देश के शिक्षकों जागो,
हे देश के माता-पिता जागो,
यदि "संस्कार और वक्त",
अपने बच्चों को नहीं दे सकते
तो मत करो पैदा ऐसी संतान।
निरवंश रहकर करो देश,
समाज एवं बेटी की रक्षा,
पेट की भूख के लिए,
रोटी पैदा करो एक वक्त तो,
तो दूसरे वक्त पैदा करो-
संस्कार इन बच्चों में।
मत छोड़ो उन्हें,
बदबूदार गलियों में,
ताकि न हो सन्तान,
मजबूर रोटी की खातिर-
विष्ठा खाने को,
देश की खातिर,
इस समाज की खातिर,
दुनिया की ख़ातिर,
इस भगवान के घर की खातिर,
बेटियों की खातिर,
तुम्हें यह सब करना ही होगा।
ऐ ! मेरे माता पिता,
और शिक्षकों,
तुम्हें जगना होगा,
एक बार फिर,
एक बेहतर भविष्य के लिए।