पहला प्यार
पहला प्यार
नदी की कलकल ,
ध्वनि सी करती ,
नाचती, इठलाती,बलखाती,
बाँवरा सा हो गया हूँ,
आजकल मैं एक ,
समन्दर की खोज में,
मेरे मन का उल्लास,
मुझे रूकने नहीं देता,
थमने नहीं देता,
दौड पड़ता हूँ मैं,
हर उस परछाईं की ओर,
जो तुम सी लगती है,
तुम सी दिखती है,
बह जाता हूँ पवन की,
उस गति के साथ,
जो तुम्हारा पता बता दे,
हूँ तो मैं एक प्रेम की सरिता,
पर एक प्यास सी उठी,
है मेरे मन में प्रियतमा मिलन की,
एक ज़िद सी है तुम्हें पाने की,
तोड़ देना चाहता हूँ सारी ,
रस्में इस जमाने की,
कितनी चट्टानों ने ,
मेरा रास्ता रोका ,
कितने किनारों ने,
अपने दायरे समेटे,
पर रोक न पाया कोई भी,
मेरे चट्टानी बुलंद इरादों को,
भला तूफान भी थमते हैं कभी,
फिर यह तो पहला प्यार है,
निश्छल निर्मल ,पावन, पवित्र ,
मंदिर की घंटियों सा बजता हुआ,
मेरी धाराओं में,
प्रतिपल बहता हुआ ,
मैं जिधर से भी गुजरा,
पवित्र हुआ वातावरण,
अपने पीछे छोड़ आया हूँ मैं,
एक लम्बा किनारा,
जिसमें हजारों श्रद्धा सुमन,
लहलहाते हैं प्रतिपल,
तुम्हें पाने के लिए अपना,
अस्तित्व तक खोया हूँ मैं,
मेघ बन न जाने ,
कितने बार रोया हूँ मैं ,
अब आ पहुँचा हूँ ,
तुम्हारे समीप ,
ऐसा आभास हुआ है मुझे,
पर्वत के उस पार,
खड़ी हो तुम बाँहें पसार,
मैं हर संभव जतन करता,
सुध बुध खोया हुआ,
अब शांत है मेरी धारायें,
मेरा निर्मल मन,
हाँ चाँद की चाँदनी रात में,
चाँदी जैसा चमकता है मेरा यौवन
मेरा प्यार मेरा सिर्फ तुम,
मेरे जीवन का हर आधार सिर्फ तुम
मेरी कल्पना मेरी सोच सिर्फ तुम,
मेरे जीवन की हर एक खोज,
सिर्फ तुम, सिर्फ तुम, सिर्फ तुम ।
सिर्फ तुम, सिर्फ तुम, सिर्फ तुम।।