शाश्वत सत्य
शाश्वत सत्य
जीवन का अंत मृत्यु है
यह एक शाश्वत सत्य है...
ओस कि बूँद ये जानती थी,
सारथी पहचानती थी...
सूर्य-रथ जब, चढ़ आयी किरण,
प्रश्न था तब धरा में छिपा जीवन,
या किरणों को स्वीकारता मिलन व मरण?
प्रेम बिन जीवन का क्या अर्थ?
मृत्यु नियति है , ये सोचना था व्यर्थ...
आवागमन का एक पड़ाव है मरण,
मरण से ही तो उदय है नवजीवन...
मृत्यु तो बस एक भ्रम है,
ये तो एक नित्य क्रम है...
बूँदों को था ये विश्वास,
इसीलिये था मृत्यु में भी उल्लास...
किरणों को अंगीकार करने कि प्यास...
मरण के बाद, फिर पुनर्मिलन कि आस...