चाहा था जिसको !
चाहा था जिसको !
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चाहा था जिसको मैंने, मिला ही नहीं
गोया कोई ताल्लुक़ कभी था ही नहीं !
मजबूरी अब ऐसी भी क्या रही होगी
शायद उसके पास मेरा पता ही नहीं !
उसका तो हाल-ए-दिल पता नहीं मुझे
मुझको शिक़ायत भी है, गिला ही नहीं !
लहू का क्या, वो आज तलक रिस्ता है
ज़ख्मों को अपने कभी सिया ही नहीं !
उसके बग़ैर जो कटी, ज़िंदगी ना थी
ज़िंदा ज़रूर रहा मगर जिया ही नहीं !