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खुशी

खुशी

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कभी-कभी मन यूँ ही

एकदम उदास हो जाता है

बेरंग आकाश हो जाता है

लाख टटोलो, कोई कारण नहीं मिलता

लाख चाहो, मन नहीं खिलता

 

लगता है,

शायद कोई बात रह गई थी

जिसपर उदास होना रह गया था

या फिर कोई उदासी रह गई थी

जिसे पूरी तरह पसरना बाकी रह गया था

या फिर अंदर कोई आशंका रह गई हो

कोई डर रह गया हो

जो मेरे कहने से दब गया हो

दब-दब के मर गया हो

और अब यूँ उदासी बनकर पसर गया हो!

 

बहुत कम होता है ऐसा

कि मन एकदम खुश हो जाता हो

यूँ ही अचानक

इंद्रधनुषी आकाश हो जाता हो अचानक

 

खाली पाँव हरी-हरी घास पर चलने से

नंगे बदन छत पर टहलने से

नहाते वक्त देह खूब मलने से

हवा के हौले-से बदन छूने से

बारिश में तन-मन भिगोने से

जाड़े में गरम-गरम धूप में सोने से

मन खुश होता ज़रूर है

मानो कोई अधूरी बात पूरी हुई हो

पर खुश होने का कारण होता ज़रूर है!

 

बग़ैर कारण मन खुश हुआ करता नहीं

फिर बग़ैर कारण मन क्यों

एकदम उदास हो जाता है यूँ अचानक?

 

क्या उदासी मन की मिट्टी में

बग़ैर खाद-पानी उग आती है

खर-पतवार की तरह

और खुशी को चाहिए

ठेहुना-भर पानी

धान की तरह?


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