अफसोस!
अफसोस!
अफसोस इस बात का नहीं है
कि वो मंजिल हमे मिली क्यूँ नहीं?
पर अफसोस इस बात का है
कि हम मंजिल तक पहुँचे क्यूँ नहीं?
रवैया सकारात्मक रखा फिर भी
हमें कामियाबी भले नही मिली
पर आज भी दिल में खिली हुई हैं
जो खिलाई थी वो उम्मीद की कली
'आखिर क्या मिला अफसोस कर के?'
आत्मचिंतन कर के ये समझ में आया
'हम खुद ही अपना दिल जलाते रहे
या फिर नया कोई अनुभव भी पाया'
नहीं बितानी है अब जिन्दगी हमे
पुरानी बातों का अफसोस करने में
अब तो हम आज का उपयोग करेंगे
आने वाली कल को बेहतरीन करने में
अफसोस करने की बुरी लत को
हम खुद ही छोड़ देना चाहते हैं
तमाम गलतिओं को सुधार कर
मंजिल की और बढना चाहते हैं