बाज़
बाज़
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तुमने बाँटी होगी धरती
मैं तो अखंड विश्व का वासी;
आज इधर, कल जाऊँ उधर
मैं हूँ एक अथक प्रवासी !
बाज़ एक मैं
देखो मेरे बाजू का विस्तार,
कर सकता हूँ जब भी चाहूँ
पर्वत - नदियाँ पार !
तुम शायद समझो क्रूर मुझे
पर जानो मेरी सुन्दरता ,
देखो मेरी आँखों में,
बसती है विश्व- विहंगमता !
शायद मुझसे ईर्ष्या कर
बनाऐ वायुयान ,
फिर भी कैसे पा सकते हो
मुझ - सी उन्मुक्त उड़ान !
प्रयास करो , यदि पा जाओ
तुम मुझ- सा दृष्टिकोण ,
"वसुधैव- कुटुम्बकम" जान जाओ
तो क्या करने बम और द्रोण ?
यदि इरादों में मज़बूती,
मन में दृढ़ विश्वास;
आ सकते हो संग में मेरे
लेने शुद्ध श्वाँस !!