फिर क्यों रिश्ते आ रुला रहे है
फिर क्यों रिश्ते आ रुला रहे है
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कल तक
हाथों से चढ़ाते थे
आज चढ़ाये जा रहे हैं...
वो फूल जो कभी
मन को महकाते थे
आज बेजान तन को महका रहे हैं...
आँखें पत्थर ज़ुबान खामोश
रिश्ते आकर आवाज़ लगाये जा रहे हैं...
ना रात की रैना है
ना दिन का उजाला है
ना कोई जज़्बात है
ना कोई बात है
ना अब अश्रु का साथ है
फिर क्यों रिश्ते आकर रुलाये जा रहे हैं।।