Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

(होक रुसवा में जाने जहाँ चला)

(होक रुसवा में जाने जहाँ चला)

1 min
385


होके रुसवा में जाने जहाँ चला,

देश मेरे छोड़ तुझे मैं कहाँ चला।


बुनियादी हैं जो तस्वीरें उनकी बुनियाद नहीं,

फरयादी हैं जो यहाँ उनकी फरियाद नहीं,

रोटी ना बदन पे झोला यहाँ कोई तरसता है,


मेरे घर के बगल में नन्हा सा एक हाथ पसरता है,

करके हिन्दू मुसलमान मैं यहॉं दो फाड़ चला,

देश मेरे छोड़ तुझे मैं कहाँ चला।


बिगड़ती हैं तस्वीरें यहाँ जो किसानों की,

लब पे आती है दुआ बनके फरियादों की,

बैठे हैं सीखचों में सब यहाँ अपना मुकाम लेके,


रोके कोई उनको जो बैठे सियासती दुकान लेके,

रोके नहीं रुकता जलजला देखो धुआँ उड़ा,

देश मेरे छोड़ तुझे मैं कहाँ चला।


कल पूछेंगी पीढ़ियाँ हमसे यह जमीं धूसर क्यों है,

केसर की क्यारियों में यहाँ रक्त का मंजर क्यों है,

सियासती चौसर से कैसे हल भूख का ला पाओगे,


कातर आँखों में रोशनी क्या आशाओं की जगा पाओगे,

रुका नहीं है यह मंजर जो हर ओर चला,

देश मेरे छोड़ तुझे मैं कहाँ चला।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract