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परवाज लेता परिंदा

परवाज लेता परिंदा

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आसमान में उड़ने का हौसला है ।

खुद के पर हो ऐसा जज़्बा है ।

पर क्या पिंजरे में बंद पंछी के लिए,

थोड़ी सी भी वेदना है ।


पिंजरा ही अब

इनका संसार है ।

नाउम्मीदी से परों को फड़फड़ाते,

पिंजरे में रहने का दर्द सुनाते ।

उन्हें, जिनके कान नहीं

अपनी असहनीय वेदना को बताते,

उन्हें जिनमें संवेदना नहीं ।


हमारी व्यथा की कथा

का अंत नहीं ।

पर परिंदो को भी

इसका हिस्सा बनाते हैं ।

खुली खिड़की से

आसमान को ताकते हैं

और पिंजरे में कैद पंछी

का जीवन हरते हैं ।


खुद की व्यथा की कथा तो

रो रो के सुनाते हैं ।

पर पंछियों के असहनीय दर्द

को देख भी नहीं पाते हैं ।


पिंजरे के पंछी की पुकार

स्वतंत्रता की कामना उदास है ।

जीजिविषा दम तोड़ती है ।

कहने को तो

सुख दुःख का चक्र होता है ।

पर कैदी परिंदे का तो ,

जीवन मरण बस पिंजरे में होता है ।


परवाज लेता परिंदा

जीवन को एक नई दिशा देता है ।

पिंजरे का पंछी बंद दरवाजों में

रहने की शैली बना देता है ।

नाउम्मीदी से परों को फड़फड़ाते,

हमारी असफलता का ही तो सूचक है ।


दिखता उनकी आँखों में,

अपनों से बिछड़े होने का एहसास ।

इसीलिए हमें है एकाकी जीवन का साथ ।

वो झूमती डाली, हवाओं में लहराते पत्ते

और झूमते पंछी ।

दिखे गर रोज इन आँखों को,

तो सँवार दे हम सबकी जिंदगी को । ।


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