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Rashmi Prabha

Drama

4.4  

Rashmi Prabha

Drama

मैं कुछ कुछ रह गया था यहीं कही

मैं कुछ कुछ रह गया था यहीं कही

2 mins
400


कुछ हँसी कुछ झगड़े

यहीं तो थे कहीं

कुछ रूठना कुछ मनाना

यहीं तो थे कहीं

किसी ने न जाना

मैंने खुद भी नहीं जाना

मैं कुछ कुछ रह गया था यहीं कहीं !

आँखों में घूम गए वो पल छुट्टियों के

जहाँ सभी खड़े होते थे मेरे इंतज़ार में

एक साथ छू लेने को तत्पर

सब अपनी अपनी कहना चाहते थे

बासंती रिश्तों की खुशबू

हमारे हर कमरे, आँगन में फैली होती थी

बेमानी ठहाके लगाते थे हम

हवाएँ भी रुक कर दाँतों तले ऊँगली दबाती थीं !


क्या यूँ उजड़ जाते हैं बीते पल

दरक जाती हैं दीवारें

फूलों की जगह उग आती हैं झाड़ियाँ ... !!

कुछ भी हो -

इस पल कोई पुकार मुझे सुनाई दे रही है

..किसकी पुकार कहूँ इसे

सब तो एक साथ पुकार रहे हैं ...


कितनी अजीब बात है -

मैं आया हूँ अपने बेटे के साथ

पर कई अपने साथ हैं -

पापा, अम्मा , बहनें , पत्नी

और यह बेटा गोद में है ....


यह क्या अफरातफरी है

अचानक क्यूँ समय समाप्त की घोषणा है

मुझे बड़ी बेचैनी सी हो रही है ...

क्या आज यहाँ से चलने के पहले

मुझे हिदायत नहीं मिलेगी

ठीक से जाना !!!


जिसे सुनते 'ओह' ज़रूर कहता था

पर बड़ा सुकून था इस बात का

रोष होता था छुट्टियों के ख़त्म हो जाने का

तो ओह ' कहने का यही बहाना होता था !


चलने से पहले कहता जाऊँ

घर वो घर भले न रहा हो

पर यादों की इमारत इतनी बुलंद है

कि मैं फिर आना चाहूँगा

क्योंकि यहाँ की दीवारों में जज़्ब वो कहकहे

आज भी सुनाई देते हैं

और यकीनन जब जब हम आयेंगे - सुनाई देते रहेंगे



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