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वर्षा ऋतु

वर्षा ऋतु

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सुनो सखी संदेश आया है वर्षा के आने का ।
मन मयूर नाचता है और दिल करता है गाने का ।
बिजली कड़क रही है और काले बादल उमड़-घुमड़ कर आ रहे हैं ।
मोर पंख फैला कर नाच रहे हैं और पंछी घोंसलों की ओर जा रहे हैं ।
वर्षा के स्वागत में प्यासी धरती के होंठ थरथराने लगे ।
आकाश की ओर देखकर किसान के नयन भी जैसे मुस्कुराने लगे ।
बरसो-बरसो और सराबोर कर दो मेरा तन मन ।
इतनी गर्मी सहने के बाद जैसे चीख़ रहा हो जन जन ।
ऋतुओं की रानी भी है घमंड में चूर उसे सावन की जवानी मिली है भरपूर ।
इठलाती हुई, बलखाती हुई, लहराती हुई कभी पास आती है और कभी हो जाती है दूर ।
वर्षा अपने संग ख़ुशहाली और जीवन तो लाती है ।
पर कभी कभी नदियों और तलों को भर कर बाढ़ से तबाही भी मचाती है ।
अच्छा बुरा, बुरा अच्छा प्रकृति का नियम धर्म है ।
सृष्टि को विनाश से बचाना ,यह मनुष्य का कर्म है ।
यह वर्षा की ठंडक यह वर्षा का पानी ।
है जन जीवन पर परमेश्वर की क़दरदानी ।
वर्षा के रूप में प्रभु की रहमत की फुहार हमें धन्य कर देती है ।
बिना कुछ लिए ही हमारे जीवन में हरयाली भर देती है ।
चलो हम सब मिलकर ऐसी दया और सहानुभूति की वर्षा करें ।
समस्त प्राणियों के जीवन को सदा ख़ुशियों से भरें ।


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