आखिरी अश्क
आखिरी अश्क
बिखरा पड़ा हूँ मुझे इस तन्हाई में सिमट जाने दो।
अब और दर्द की दरकार
नहीं है मुझे ठहर जाने दो।
मुझे रहने दो आँखों में चमकता
अब तुम मुस्कुराना बिलकुल नहीं
मुझे रहने दो कुछ पल और थिरकता।
बिखरा पड़ा हूँ मुझे इस तन्हाई में सिमट जाने दो।
भटकने दो मुझे अंखियों में
पुतलियों को और निखर जाने दो।
मुझे उतर जाने दो दिल में दमकता
अब तुम एक पानी की घूंट भी पीना नहीं
मुझे प्यास भुझाने दो गले से रिस्ता रिस्ता।
बिखरा पड़ा हूँ मुझे इस तन्हाई में सिमट जाने दो।
अब और दर्द की दरकार
नहीं है मुझे ठहर जाने दो।
[ ©तनहा शायर हूँ ]