इश्क का मज़हब
इश्क का मज़हब
इश्क का मज़हब नहीं है
इश्क खुद मज़हब ही है
प्रेम की पाती है गीता
याद में जलना हवन है
अश्रु पंचामृत सरीखे
और खुदा महबूब है
प्यास को पायस समझना
आह वेदों की "ऋचाएं"
यार की सांसे है "आयत"
और दुआ महबूब है
इश्क का मज़हब नहीं है
इश्क खुद मज़हब ही है
प्रेम की पाती है गीता
याद में जलना हवन है
अश्रु पंचामृत सरीखे
और खुदा महबूब है
प्यास को पायस समझना
आह वेदों की "ऋचाएं"
यार की सांसे है "आयत"
और दुआ महबूब है