उन्मुक्त
उन्मुक्त
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मुझे है ईर्ष्या काले बादलों से
जो आकाश में तेरते है पागलों से
मुझे है ईर्ष्या उड़ते विहंगों से
जो भ्रमण करते हैं उन्मुक्त पंखों से
मुझे है ईर्ष्या बहती सरिता से
झर झर जिसका जल कोलाहल करता
मुझे है ईर्ष्या चलती हवा से
झोंका ठण्ड़ा, मन को शान्त है करता
प्रकृति है एक उन्मुक्त धारा
बंधनो में ग्रस्त मेरा जीवन सारा
फिर क्यूँ न मुझे ईर्ष्या हो उनसे?
है ईर्ष्या मुझे प्रकृति के कण कण से
इच्छा मै बंधन मुक्ति की रखती हूँ
राह उन्मुक्तता की सदा तकती हूँ
स्वछन्द जीवन मेरा बहती धारा सा
मन में शेष न हो ईर्ष्या लेश सा।