रिश्तों से परे
रिश्तों से परे
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पता नहीं कब
बिना रक्त संबंधों के
किसी का दर्द
अपना लगने लगता है।
मन करता है
उसे झंझावातों से बचा लें,
उसके खारे आंसू पी लें।
वह रोए जब
दर्द लगे कोई
अपना सा
समझो आंसू
की परिभाषा
सांझी होकर के
छलक गई.
रिक्त सपाट से
मन के कोरे
पन्ने पर
संवेदी कुछ
रंगों की रेखा
उबटन बनकर
सहसा उभर गई.
यह उत्कर्ष है
संबंधों में संवादों का
यह तत्सम है
उभरे नव आकारों का
आँखे पोंछो उनकी
फिर अपनी सुधि ले लो
जीवट कर दो जीवन
नदिया में कलरव हो लो.