मैं फिर भी लिखूँगा
मैं फिर भी लिखूँगा
मैं क्या लिखूँ ?
मैं मन्दिर लिखता हूँ,
वो आयोध्या हो जाता है,
मैं मस्जिद लिखता हूँ,
तो बाबरी ढह जाती है !
मैं क्या लिखूँ ?
मैं इन्कलाब लिखता हूँ,
वो मार्क्स हो जाता है,
मैं राष्ट्रवाद लिखता हूँ,
तो हिटलर हो जाता है !
मैं क्या लिखूँ ?
मैं प्रेम लिखता हूँ,
वो एक हो जाता है,
मैं धर्म लिखता हूँ,
तो बट जाता है !
मैं क्या लिखूँ ?
मैं देवी लिखता हूँ,
वो पूजी जाती है,
मैं नारी लिखता हूँ,
तो नोंच ली जाती है !
मैं क्या लिखूँ ?
मैं भारत लिखता हूँ,
वो माता हो जाती है,
मैं जनता लिखता हूँ,
तो भूखी सो जाती है !
लेकिन,
मैं फिर भी लिखूँगा,
मैं बिना मन्दिर का भगवान लिखूँगा,
मैं इबादद में नई आयत लिखूँगा
मैं भगत सिंह की क्रांति लिखूँगा,
मैं गांधी का संघर्ष लिखूँगा !
मैं फिर भी लिखूँगा,
मैं मुल्क का इतिहास लिखूँगा,
मैं देश की शान लिखूँगा
मैं चंड़ी का अवतार लिखूँगा,
मैं मेनका का श्रृंगार लिखूँगा
मैं फिर भी लिखूँगा !