मेरी हमसफ़र
मेरी हमसफ़र
'कमल' हूँ कविता से जुड़ा,
शब्दों से नहीं भावोंं में मुड़ा।
वो गीत नही राग़ है,
कमल के पुष्पोंं में बसती पराग़ है।।
मैं मौन हूँ वो आवाज है,
चलती कलम की वो साज है।
पँखुड़ियोंं में भरती वो रंग,
मैं पुष्प वो आधार में तरंग।।
मैं लिखूँ जो वो तराना,
मैं गा सकूँँ जो वो गाना।
मेरी कलम से निकलता मेरा गीत,
मेरी जिन्दगी से जुड़ा मेरा मीत।।
मैं पथिक वो मेेरा हमसफर,
सुख में दु:ख में आठों पहर।
कमल के लिए कुमुदिनी है,
कविता कमल की जीवन संंगिनी है।।
'कमल' कविता से नहीं दूर,
'कविता' कमल से जुड़ी भरपूर।
मेरे संंघर्ष में मेरे साथ खड़ी,
जीवन भर, हर क्षण हर घड़ी।।