Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Dr Shama Khan

Inspirational

2.5  

Dr Shama Khan

Inspirational

कान्हा

कान्हा

1 min
13.5K


कान्हा भूमि प्रेम में पगी
कण-कण में ऐसी अलख जगी
कदम्ब भी करते यहाँ अठखेली
पत्ते-पत्ते में है प्रेम लगी
सुध-बुध खो दे ऐसी पवनसुधा
पुकारें मन हो बेचैन
तड़प उठी
विकल सखी
कैसे मिलूं धाय
कभी छिप जाता कदम्ब कुंज मैं
कभी जमना में खिलखिलाता
कभी पवन में घुल
भीतर तक छू जाता
कभी कान्हा में
मैं कान्हा हो जाता।
मुस्कान तेरी कान्हा, ऐसी ह्र्दय में उतरे
कण-कण में प्रतिबिम्ब हो
सृष्टि में पल प्रतिपल नूर भरे।
पुष्प मुस्कुराये, लाज से गदराये
कुहैया कलख करती, प्रीत भर गाती। हवायें भी मदमस्त हो चूमती जाती,
जमना की लहरों में कान्हा तू
ऐसी आभ बिखेरे
शांत स्मित हो, सबके ताप हरे।
वृन्दावन की कुंजों में कान्हा
तेरी ही खुश्बू बिखरे,
हर ओर बजती मुरली धुन
विकलते मन को शीतल करें।
सच कहती हूँ कान्हा
एक बार जो मन यहाँ पहुंच जाये
ना भाये राग रंग दूजा,
बस तेरी प्रीत में डूब जाये।
फिर मैं कान्हा
कान्हा मैं हो जाऊं।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Dr Shama Khan

Similar hindi poem from Inspirational