वो थी
वो थी
वो थी
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कभी लगता है ज़िन्दगी वो थी
दिल ये मेरा कहे अजनबी वो थी
वो कहती थी अजनबी हम थे
गुनाह था खुद से लापता हम थे
सोचा शरीक-ए-ग़म वो थी
कभी मुझसे मिल के हम वो थी
बावफा उम्मीद में हम थे
किस ज़माने से आशिक हम थे
दिल से बेज़ार बेज़ुबान वो थी
आरज़ू तार तार बदगुमान वो थी
घने अँधेरे में कभी हम थे
घनी रातों के चाँद भी हम थे
दिल से जुड़े लोगों में वो थी
मेरी आँखों में ज़िन्दगी वो थी
मैंने खुद अपने से बात किया
मैंने फिर से उसको याद किया
उन कलियों के खिलने से पहले
उन गलियों में मिलने से पहले
मैं दिल ही दिल में आबाद हुआ
मैंने फिर से उसको याद किया
--- तुषारराजरस्तोगी ---