आज मैं क्या लिखूँ
आज मैं क्या लिखूँ
सोचती हूँ आज क्या लिखूँ?
गीत? ग़ज़ल? या फिर कहानी लिख दूँ...
क्या लिखूँ, प्रीत लिखूँ, राग लिखूँ या रवानी लिख दूँ...क्या लिखूँ?
या लिखूँ असह्य वेदना में घुटती चीखों की आवाज़ों को
या लिखूँ वहशियों की भेंट चढ़ते सीमा के जांबाजों को
माँ के अंगों को काटती वो धर्म की तलवार लिखूँ
या दम तोड़ते किसानों के अनगिनत सवाल लिख दूँ...क्या लिखूँ?
देश हित के नाम पर निज स्वार्थ साधते लोग लिखूँ
या भक्षकी रक्षकों की बेशर्मी का राग लिख दूँ
संस्कृति जो धंसती जा रही गर्भ में उस पर लिखूँ
या निर्लज्जता को चढ़ती जवानी का फाग लिख दूँ...क्या लिखूँ?
अपने ही घर को लूटते सज्जनों का कमाल लिखूँ
या कुर्सी ख़ातिर मुक्त स्वर में चीखता बवाल लिखूँ
या फिर लिखूँ भागीरथी के क्षुब्ध होते नीर को
या शहीदों की रूह के अंतस में उठती पीर को....क्या लिखूँ ?
सोचती हूँ आज क्या लिखूँ?