ख़ुदा का घर है यहां
ख़ुदा का घर है यहां
कौन कहता है
तन्हाई अच्छी नहीं होती
भीङ में जब अक्सर दिल
मैला हो जाता है
मैं तन्हाई के पलों में
दिल के दौरे पे जाती हूँ
घूम-घूमकर कोने-कोने में
कुछ काई, कुछ जाले
कुछ धूल जो जमी होती है
कभी खंरोच कर
तो कभी हक़ीक़त के
खुरदुरे कपड़े से
पोंछा लगाकर
मैं दिल की दीवारों को
चमकाती रहती हूँ
ऐ सोंचकर की ख़ुदा का
घर है यहां
अगर घर मैला रहेगा
तो कैसे यहां ख़ुदा रहेगा।