शोर ए दिल
शोर ए दिल
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उसकी कोई चाल मैं समझा न था
वो मेरा हिस्सा था, पर मेरा न था ॥
वो स्याह्कारों में था शामिल मगर
पैरहन पर एक भी धब्बा न था ॥
उसको समझाना गया बेकार सब
वो किसी भी बात पर ठहरा न था ॥
क्यों भला करता यकीं मैं ग़ैर पर
मेरा साथी जब मेरा साया न था ॥
जिसको मैं हमदर्द था समझा किया
वो था इक पत्थर, कोई झरना न था ॥
आईने को देख कर हैरत हुई
उसमे जो चेहरा था, वो मेरा न था ॥
आज महफ़िल बिन ‘शशि’, खामोश है
वो बिछुड़ जायेगा, ये सोचा न था॥