त्रिवेणियाँ
त्रिवेणियाँ
1
बोहोत खुरदरी हो चली है आवाज़ मेरी,
इस पर अपनी आवाज़ का पानी चढ़ा दो.
तू ख़ामोशी का पैराहन उतारे तो कोई बात बने ।
2
अजब कैफियत है इसकी, फिर भी है मुतमइन,
तुझको मांगता नही है, बस चाहता है दिल.
बारहा खुद को यूं ही बरगला लिया है।
3
ये लोग खुद ही अपने दुश्मन हैं
इन्हें किसी के भी नाम पर लड़ा दो.
ये मज़हब बड़े काम की चीज़ है।
4
इक बड़ी-सी चिड़ियाँ है, मछली की पूँछ वाली
एक गुरिल्ला भी है, बोहोत ग़ुस्से में दीखता है.
कोई है,पल-ब-पल मुस्सविरी करता है आसमाँ पे।
5
तेरी यादों की वैसी बारिश नहीं होती,
मेरे हक में तेरी कोई कोशिश नहीं होती.
ये शिकायत नहीं है, ना उलाहना कोई।
6
कोई लगाव नहीं है इस मोड़ से मेरा
ठहर जाता हूँ फिर भी तेरा इंतजार हो जैसे.
साँझ ढले तार पे बैठा हुआ कबूतर हूँ मैं।
7
बोहोत दिन हुए वो उल्का गुज़रा नहीं इधर से
सूरज सदियों से उसके इंतजार में है .
कुछ दोस्त अब फ़कत खाबों में मिलते हैं।
8
वो शॉल तुम पे बोहोत फबती है
ये तुम्हें भी मालूम है, और मुझे भी.
सर्दियां आने में काफ़ी वक़्त है लेकिन।
9
तेरा बदन एक नायाब साज़ है
मैं उँगलियों से इसे छेड़ देता हूँ.
और उठती है सबसे उदास धुन।
10
किसी के दर्द का धुँआ साँसों में अटका है
वो लम्हा जला बहुत था, और बेइन्तहा चटखा है
भोपाल के सीने से उठती रहती है गैसों की बू।
11
वो बोहोत अज़ीज़ थी, दिल के करीब थी मेरे,
बस अब कुछ ही दिनों की और मेहमाँ है.
जिंदगी कमीज़ का घिसता हुआ कॉलर हो गई।
12
फिर से वही छीलती हुई तन्हाईयों के पल.
फिर से एक-एक सिरा ख़ामोशी का थामे रहना.
हमारी बातों की चिल्लड़ बोहोत जल्दी खर्च हो जाती है।
13
कोहरा बेआवाज़ बहता है रात के सर्द पहरों में
नदी है कि कल-कल करती रहती है हरदम
एक को ख़ामोशी पसंद है, तो दूसरे को शरारत।
14
तेरे होंठों को कस के चूम लिया है
तेरे बदन के हर हिस्से पे घूम लिया है
सारी ख़्वाहिशें पूरी हैं, सब सफ़र पूरे।
15
गले में बांहें डाले एक दूसरे की मस्त हैं दोनों,
इन पहाड़ों और बादलों की खूब छनती है.
मेरे ही कुछ दोस्त हैं, जो बेग़ैरत हो गए।