अंतिम अभिलाषा
अंतिम अभिलाषा
लो आज चला इस दुनिया से,
साथी न मिला इस धरती पर।
यदि अपना-सा मैं तुम्हें लगूँ,
तो-तुम पुष्प चढ़ाना अर्थी पर।।
लो आज...
यह शमित हड्डियाँ मेरी अब,
तुम्हें अब न बुलाने आयेंगीं।
अपना गर समझो तो आ जाना,
अन्यथा यूँ ही ये जल जायेंगी।।
लो आज...
तिल-तिल यूँ तो ताउम्र जलीं,
पर,आज अंतिम ज्वाला है।
दो अश्रुबिंदु की दिल में ख्वाहिश,
यह अश्रु मेरी वरमाला है।।
लो आज...
मैं निशब्द रहूँगा अंत घड़ी,
तब तप्त चिता सब बोलेगी।
जो रहस्य रहा जीवन भर तक,
वह भेद परत दर खोलेगी।।
लो आज...
तर्पण जल से ऊर्ध्व धुआँ होगा,
वह पढ़ना विरही की भाषा।
फिर मिलें पुनर्जन्म पाकर हम,
यह 'अंजलि' अंतिम अभिलाषा।।
लो आज...