यह तज़ुर्बा भी इतना आसान नहीं
यह तज़ुर्बा भी इतना आसान नहीं
यह तज़ुर्बा भी इतना आसान नहीं
किसे होता यहाँ खुद पे गुमान नहीं
किराये की बस्ती है, ये दुनिया ये
यहाँ किसी का अपना मकान नहीं
चुरा के शख़्सियत, पहन लेता हूँ अक्सर
मेरी अपनी कोई पहचान नहीं हैं
पहले लुटा, फिर टूटा, फिर रूठा
दिल अब पहले सा नादान नहीं
हँसते हुये जलना, सीख लिया है इसने
यूँ होता आजकल परेशान नहीं
चंद पल मिले हैं, गुज़र जायेंगे
मेहमान हैं ये पल मेजबान नहीं
तीर तो तैयार है कब से, दिल चीरने को
कसी हुई मगर नज़रों की कमान नहीं हैं