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नज़रिया

नज़रिया

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तुम ने फूलों में भी कमी पाई, 
हम ने काँटों में भी नमी पाई।

 

तुम तो उड़ते रहे परिंदों से, 
हम ने रहने को यह ज़मीं पाई।

 

तुम तो अपनों को अब तरसते हो, 
हम ने गैरों की न कमी पाई।

 

तेरा घर भी तुझे मुबारक हो, 
मैंने बस बंजर ज़मीं पाई।

 

तुम तो अब भीड़ में ही गुम हो कहीं, 
हम ने तनहाई भी थमी पाई।। 

 


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